Sunday, July 3, 2016

"A man with a unique cause"

As usual I went on cycling today . I started it but having some different  feeling , something  going on in my mind. Covering  a distance of 24 km I reached to India Gate, A memorable place of warriors, that unique feeling was still within me .Guess what happened?
           I met a man who has enthusiasm and passion like a warrior. I called him a warrior as he has travelled 1600km from Ahmednagar to New Delhi. A place of Anna Hazare, “The man who revolutionised the youths to fight for the systematic change .Stand against the corrupt  political system of the country. This cycling man perhaps has the same rigidity of Anna ,to do something in the honour of our soldiers . So he named his journey as "EK SAWARI DESH K VEERO K NAAM". While talking to him I came to know, one interesting fact that he is one of the craziest fan of Today’s biggest warrior against the whole corrupt system-Mr. Arvind Kejriwal. He made me request to do something so that he can met the hero of comman man . I told him that Arvind sir is in Punjab on a mission to build a New Punjab along with youths, then I take him to our party office .He was keen to know everything about Kejriwal  .I was amazed by his curosity ,will and passion, to do something for our country and our soldiers like Kejriwal . He has shown his true affection towards our true heroes by cycling a long distance.

“My salute to my new passionate friend  Ravindra.


Friday, January 8, 2016

"खुशियों का बचपन"

""खुशियों का बचपन""



अब बड़ा हो गया पर यार सच बोलूँ वो बचपन फिर से जीना चाहता हूँ...

जब छोटा था तब हमेशा सोचता था की वो जो पड़ोस में रहने वाले भैया कितने मजे से अपनी जिंदगी जीते है अपनी खुद की बाइक चलाते है, अपनी मर्जी के कपडे पहनते है, बाल कटवाते है, सिनेमा जाते है और हाँ कभी कभी छुप कर दूर पान के खोके पे सिगरेट पीते है तब मै भी ये सोचा करता था की बड़े हो कर अपनी मर्जी का करूँगा....बाल और कपड़ो को ले कर तो खासी दिक्कत थी घर वालो से और अब जब ये सब कर के देख लिया तब जाना वो शाम को पापा के जूते की आवाज़ से डर कर टीवी बंद कर देना और किताब ले कर बैठ जाना, में जो मजा था वो इस बेरुखी वाले बड़प्पन में नहीं....

सब्जी खरीद कर लाते हुए बचे हुए पैसो से बाहर का खाना और मम्मी से सब्ज्यिों के दाम बड़ा कर बताना, वो जानती सब थी मगर कहती कुछ ना...अब वो खुद के पैसो से खरीदे हुई चाऊमीन और समोसे में वो स्वाद नहीं आता बस ऑफिस से आते वक़्त भूख मिटा देते है...

वो गर्मिया भी क्या खूब हुआ करती थी मोह्हले के सब का बाहर निकल कर बैठना और बच्चो का ना पढ़ने का एक soild बहाना बिजली नहीं है और अब ये इन्वर्टर,जनरेटर ने बहुत सारे बचपनो का एक अच्छा बहाना छीन लिया....

तब जरूरतें बहुत जायदा थी, कमाई कम मगर खुशियाँ बहुत जायदा; अब जरूरतें कम होती जा रही है कमाई जायदा पर खुशियाँ कही उस बचपन की गेंद की तरह खो गयीं है जिसे क्रिकेट खेलते हुए बहुत दूर मार दिया करता था और वो कही झाड़यिों में खो जाया करती थी....

एक सलाह देता हूँ अपने आसपास के बच्चों को सही गलत का जायदा पाठ मत पढ़ाईयेगा ...करने दीजेगा कुछ चोरिया, कुछ गलतियाँ और बहुत सारी शरारतें हाँ ये गलतियां बड़ न करदे इसका ध्यान भी रखें,  क्यूंकि ये बचपन की यादे ही बड़े हो कर उसकी रोजमर्रा की जिंदगी और उस जिंदगी की जरुरतो में कभी कभी छोटी सी मुस्कान ला दिया करेंगी चेहरे पर....
   
"एक तस्वीर के साथ छोड़े जाता हूँ ताकि आप अपने बचपन की कुछ खटी कुछ मीठी कहानियों को याद करते रहें"। ☺☺😢😢



Wednesday, December 25, 2013

जनून,ज़िद,चुनोतिया

                                                                     "जनून"
जनून शब्द जहन में आते ही  कुछ कर गुजरन का मन करता है।

Thursday, August 16, 2012

15th Augest


Thursday, September 15, 2011

है आनंद अकेलेपन में

है आनंद अकेलेपन में

जब तक चाहे हँसते रह लो
या फिर चाहे जी भर रो लो
कौन यहाँ जो तुझको रोके
कौन यहाँ जो तुझको टोके
कर लो वो सब जो है मन में

है आनंद अकेलेपॅन में

जीवन का विस्तार देख लो
प्रकृति के उस पार देख लो
अच्छे बुरे का ध्यान छोड़ तुम
जो चाहे अपरंपार देख लो
पा लो जो है जीवन में

है आनंद अकेलेपन में

जब आप अकेले होते है
खुद के भीतर भी खोते हैं
कुछ अच्छे कुछ बुरे किंतु
यादो के मोती पिरोते है
क्या क्या मिलता है हर क्षण में

है आनंद अकेलेपन में

तब आप समझ ये पाते हैं
क्यों भौरे गुन गुन गाते हैं
क्‍या पेड़ नशे में झूम रहा
क्यो बादल छा जाते हैं

क्यों ख़ुसबु बिखरी आज पवन में

है आनंद अकेलेपन में

इस धरा का हर मनुश्य पैसे के लिए बिक गया है

कोमल कुसुम पुष्प सादृश्य वह
मन को बहुत सुहाति थी
हृदय हिलोरें लेता था जब वो
मुझसे मिलने आती थी

वादे कर कसमें खाए हम
सातो जनम निभाने का
सुख दुख में संभाव रहें
जीवन भर साथ बिताने का

दिवस एक इस हृदय पटल पर
ब्यावहारिकता का पाठ लिख गयी
कर ग़रीब का भाग्य ग़रीब तुम
धन वैभव के हाथ बिक गयी

आज समझ में बात ये आई
घटित हुआ क्यों ऐसा था
मेरे प्रेम में बाधक केवल
कुछ और नही बस पैसा था

घटना से प्रेरित ग़रीब अब
एक बात तो सीख गया है
इस धरा का हर मनुश्य
पैसे के लिए बिक गया है

मित्रता एक शब्द नही भावना है एहसास है

मित्रता एक शब्द नही भावना है एहसास है
जैसे पवन में सुगंध की मिठास है
मित्रता एक अतुलनीय सम्मान हैं विश्वास है
दुख के अंधेंरे में सुख का प्रकाश है
मित्रता कड़ी धूप में बरगद कि छाँव है
तपती हुई रेत पर रास्ते बताते हुए पाँव है
मित्रता आप से आपकी पहचान है
अपने गुनो अवागुणो का ज्ञान है
मित्रता अहं राग द्वेष ईर्ष्या का हवन है
प्रेम सौहार्द कर्म ज्ञान से निर्मित भवन है